Monday 28 September 2015

अंतःकरण के चार स्तर

अंतःकरण हमारे अंदर चार तरह से काम करता है. अतः इसके चार नाम भी हैं.
मन
बुद्धि
चित्त
अहंकार

मन: हमारे सोचने एवं चिंतन से जो आसक्ति पैदा होती है, जो हमारी भावनाओं को छूती है, तथा लुभावने सपने दिखाकर हमे उस ओर ले जाती है,जिसमे अच्छे बुरे की समझ नही होती है, बस एक आकर्षण होता है. यह मन कहलाता है ,यह आकर्षण आनंद पाने की लालसा की वजह से होता है. इसमे पाँचो इंद्रियाँ सहायक होती हैं

बुद्धि :जब अंतःकरण पक्के निर्णय लेता है एवं एक सुनिश्चित निष्कर्ष पर पहुँचता है , उसे बुद्धि कहते हैं

चित्त : जब अंतःकरण यादों मे खोता है, भूतकाल मे जाके अपनी पसंद को याद करता है, और जो ना पसंद हो उसे नज़रअंदाज़ करता है उस समय ये चित्त कहलाता है, अचेतन मन या यादश्त इसी का परिणाम है

अहंकार : जब अंतःकरण स्वयं को सर्वश्रेस्ट समझता है एवं दूसरों को निकृष्ट तब ये अहंकार कहलाता है

उदाहरण: जब हम रसगुल्ला खाने की चाहत हुई तो ये काम मन ने किया, फिर खाना है या नही इसका निर्णय बुद्धि ने किया, पर क्यू खाना चाहिए या नही खाना चाहिए, इस पर पहले के अनुभव से यादों मे जाके जो सूचना बुद्धि को मिली जिसकी वजह से उसने निर्णय लिया, उसे कहते हैं चित्त. अंततः जब रसगुल्ला खा लिया और सोचा जो मुझे मिला वो कहाँ किसी को मिलता होगा, ये अहंकार है.
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